वैश्विक योग दिन :योग दर्शन :विश्व योगा दिन निमित :

वैश्विक योग दिन :योग दर्शन :विश्व योगा दिन निमित :

भारतीय दरषनो में योग को अत्यंत महत्वपूर्ण गिना जाता है, पूरे विश्व में योग दिन मनाया जाता है, भारतीय दर्शन मे तत्व ग्यान की प्राप्ति के लिए आत्म साक्षात्कार करने योग साधना जरूरी बताया गया है, वैदिक और अ वैदिक (जैन बौध) दर्शनो ने भी जीवन में योग की उपयोगिता पर महत्व पूर्ण बताया है,

भारतीय दर्शन के विविध ग्रंथों में योग की विविध व्याख्या दिखाई दे रही है, जेसे की योग मतलब, वाणी,

1।इंद्रियो को वश करना

2।क्रोध रहित या समता प्राप्त करनी

3.मन को काबू में करना

4.जीवात्मा का परमात्मा के साथ संयोग करना

5।चित वृत्ति का निरोध करना

गीता में योग शब्द की अनेक व्याख्या देखने को मिलता है, जिस में दो ज्यादा प्रचलित है,

1. संत्वम योग उचचते

2. योगः कर्मसू कौषलम

योग दर्शन कौशल या निपुणता का अर्थ क्रोध रहित

दर्शन ग्रंथों में अनेक प्रकार के योग का वर्णन देखने को मिलता है, उसमे नीचे दिए गए चार योग को महत्‍व पूर्ण बताया गया है

1.मंत्र योग

2.हठ योग

3।लय योग

4.राजयोग

पतंजलि का योग राजयोग हे

योग दर्शन बहुत ही प्राचीन हे, वेद काल से प्रचलित है, ऋग्वेद में, विविष पुराणों में, उप निषदो मे योग और यौगिक साधना की जानकारी मिलती है, योग दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि थे, उन्होने हजारों साल पहले जो योग सूत्र की रचना की थी वो उसका नाम पताङजल योग सूत्र था, उन्होने अनेक ग्रंथ लिखे हैं, उसमे तीन ग्रंथ महत्‍व के हे,

1।योग दर्शन

2. व्याकरण भाष्य

3॥वैदिक शास्त्र

योग के द्वारा चित की शुद्धि, व्याकरण के द्वारा वाणी की शुद्धि, और वैदिक द्वारा शरीर की शुद्धि होती है,मन, वाणी और शरीर शुद्धि का ग्यान इस ग्रंथों में से मिलता है

वृत्ति प्रवृति कराती है, मनुष्य की प्रवृति ओके वरूती ओ के संस्कार अंतः करण या चित मे पड़ते हैं, योग दर्शन मे चित चित की वृत्तियां, उनकी अवस्था और चित निरोध के बारे में सविशेष चिंतन किया गया है, ये सभी बाबत कर्म के सिद्धांत के लिए बहुत जरूरी है,

योग दर्शन एक विशिष्ट प्रकार का चित शास्त्र हे, बुद्धि, अहंकार और मन ये तीन तत्व प्रकृति से उत्पन्न होती है,, योग दर्शन मे ये तीनों को चित कहा जाता है, चित तीन गुणों से बना है, सत्व, तामस और राजस से चित बना हुआ है, चित मे पुरुष का प्रतिबिंब पड़ता है, कर्म शुद्धि के लिए चित वृत्तियाँ बहुत जरूरी है, जीव याने कि आत्मा जो प्रवुतिया करता है उसकी छाप चित पर होती है, उसे कर्म संस्कार कहते हैं, योग दर्शन उसे कर्माशय कहता है, ये कर्म संस्कार ही कर्म बीज हे, चित वरूटिया क्लेश को जन्म देती है, क्लेश के पांच प्रकार के होते हैं

1. अविद्या

2. अस्मिता

3. राग

4. द्वेष

5।अभिनिवेश

चित वरूतिया के निरोध के लिए अष्टांग योग करने के लिए बताया गया है

1. यम

2. नियम

3. आसन

4.प्राणयम

5. प्रत्याहार

6. ध्यान

7. धारणा

8.समाधि

ये आठ अनुष्ठान से असुधधिया दूर होती है

वैदिक दर्शन मे योग दर्शन को ही कर्म के सिद्धांत की चर्चा की गई है

योग दर्शन मे कर्मों का वर्गीकरण किया गया है

1.कृष्ण कर्म

2.शुक्ला कर्म

3. शुक्ल कृष्ण कर्म

4।आ शुक्ल आ कृष्ण कर्म

योग दिन में शारीरिक योग को स्थान दिया गया है, योग नियमित रूप से करने से शरीर सुन्दर और निरोगी रहता है, योग से बुद्धि का विकास होता है, विचारो मे शुद्धि होती है, यदि आप रोजाना करेंगे योग तो नहीं पहुचेंगे रोग, शरीर निरोगी रहता है!

 

डॉ गुलाब चंद पटेल

कवि लेखक अनुवादक

नशा मुक्ति अभियान प्रणेता

ब्रेसट कैंसर अवेर्नेस प्रोग्राम

Mo 8849794377

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