लाखों की भीड़ ने श्रीराम का जयकारा किया रामकथा में।*

*लाखों की भीड़ ने श्रीराम का जयकारा किया रामकथा में।

झरिया। त्रिदिवासीय श्री राम कथा के दूसरे दिन झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह तथा रघुकुल परिवार द्वारा आयोजित श्रीराम कथा का शुभारंभ जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम हुआ। कथा में शामिल हुए अति विशिष्ठ अतिथियों को झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह द्वारा श्रीराम लिखित अंगवस्त्र तथा श्री राम दरबार का मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।

विशिष्ट अतिथियों में मुख्य रूप से धनबाद के सांसद पी एन सिंह (सपरिवार), गिरिडीह के पूर्व सांसद रविन्द्र पाण्डेय, बरही विधायक उमाशंकर अकेला, बरकट्ठा विधायक अमित कुमार यादव, धनबाद के पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल, मारवाडी सम्मेलन के अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल, यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष सुरेंद्र पोद्दार, विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय उपाध्यक्ष बलदेव पांडेय, हरीश जोशी,

बीआईटी सिंदरी के निदेशक पंकज राय, यादव महासभा के अध्यक्ष आर एन सिंह, राजद के जिलाध्यक्ष तारकेश्वर यादव, बाबू वीर कुंवर सिंह विचार मंच के सचिव ललन सिंह, राजपूत विचार मंच के महासचिव सुधीर प्रसाद सिंह, पूर्व पार्षद विक्रमा यादव, पूर्व पार्षद दिनेश सिंह, रामाधर यादव, संतोष महतो, सुधीर सिंह, अभिजीत राज, कुमार गौरव उर्फ सोनू, अनंत नाथ सिंह, भागीरथ पासवान, कृष्ण अग्रवाल, सबूर गोराई आदि लोग थे। दूसरे दिन कथावाचक पूज्य श्री राजन जी ने लाखों लोगों के सम्मुख श्री राम जी के जन्म को वर्णन करते हुए बताया कि मनुष्य अपने माँ के अंग में नौ महीने रहते हैँ, पर श्रीराम तो विष्णुरूप भगवान थे इसलिए वे अपनी माँ के अंग में पुरे बारह महीने रहे और उसके बाद चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में आवतरित हुए। अवतरण तो लिया पर प्रभु अपने विराट रूप में आए और कहे माँ बताएं कि क्या करूँ, तो माँ कौशल्या ने उन्हें शिशु रूप अवतरण करने को कहा एवं रोने का आग्रह किया। उसके बाद प्रभु अपनी माँ के आज्ञा से जब रोये तो पुरे महल में सभी दासियों ने ये खबर महाराजा दसरथ को बताया कि लल्ला का जन्म हुआ है, जिसके बाद महाराजा ने सभी दासियों को उपहार से भर दिया।

मुनी विश्वामित्रजी महाराजा दशरथजी से उनके पुत्रों को जनकल्याण के लिए माँगा तो महाराजा ने कहा कि दो अक्षर का राम होता है तो वही दो अक्षर का धन, भूमि, प्राण आदि होता है, आप राम की जगह इसमें से कुछ भी मांगिये, लेकिन उन्हें समझाया कि इनका जन्म जनकल्याण के लिए ही हुआ है और जब तक आपके सभी पुत्र आश्रम में नहीं जाएंगे तबतक जनकल्याण नहीं कर पाएंगे।
उसके बाद चारों पुत्र आश्रम गए, वहाँ मुनी से अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान प्राप्त किया।

 


मुनी ने ज्ञान देते हुए बताया कि जब तक आप अपने आपको गुरु को समर्पित नहीं करेंगे तब तक आपको ज्ञान प्राप्त नहीं होगा।
मुनी ने यज्ञ रक्षा के लिए महाराजा दशरथ से श्रीराम एवं श्रीलक्ष्मण को माँगा तो वे सहर्ष उनको अपने पुत्रों को भेज दिया। मुनी दोनों भाईयो को जनकपुरी लेकर गए। उसके बाद प्रभु राम एवं लक्षमण को सबसे सुन्दर महल में रखा, पर प्रभु सोचे कि अगर मैं महल में ही रहा तो मिथिलावासी मेरे दर्शन से चूक जाएंगे, इसलिए प्रभु अपने गुरु से आज्ञा लेकर जनकपूरी घूमने निकले और नगरवासी उनके दर्शन हेतु अपनी सुध खोकर घर से दौर चले। नगरवासी प्रभु का दर्शन कर भाव बिभोर हो गए और उनकी तुलना विष्णु, ब्रह्मा, शिव, कामदेव आदि से करती हैँ। नगर भ्रमण के बाद धनुष तोड़ने की बात मुनी ने बताया।

अगले सुबह पुरे राजमहल में सभी वीरों के बीच श्रीराम ने धनुष तोड़ कर माँ सीता के चित की संसा को खत्म किया एवं पुरे राजमहल में श्रीराम की जय का जायघोष होने लगी। इस तरह से प्रभु श्रीराम के द्वारा धनुष का तोडना एवं सीता के साथ विवाह होना तय हो गया।

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