सिंदरी बस्ती के लोग मौलिक अधिकार से भी वंचित सिंदरी।

*सिंदरी बस्ती के लोग मौलिक अधिकार से भी वंचित* सिंदरी।

200 साल की लंबी गुलामी के बाद ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्त होकर भारत को 15 अगस्त 1947 स्वतंत्र घोषित किया गया। स्वतंत्र भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जैसे गरीबी, बेरोजगारी, विकास, शिक्षा, शरणार्थियों का पुनर्वास एवं कृषि के क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाना जैसी कई चुनौतियां थीं।
कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए देश में आधुनिक खेती की जरूरत थी। आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दामोदर नदी में पानी की उपलब्धता एवं झरिया में कोयले का प्रचुर भंडार होने से सिंदरी में 6500 एकड़ भूमि अधिकरण किया गया। देश का प्रथम उर्वरक कारखाना जो आज इतिहास के पन्नों में दर्ज है” सिंदरी फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल लिमिटेड” नामक उर्वरक कारखाना की नींव रखी गई। कारखाने में अमोनियम सल्फेट नामक उर्वरक का उत्पादन 31 अक्टूबर 1951 में शुरू किया गया, जिससे देश मे हरित क्रांति की शुरुआत हुई। कारखाने का उद्घाटन मार्च 1952 में हुआ था। बदलते समय और आवश्यकता को ध्यान रखते हुए कोक – ओवन प्लांट, पावर प्लांट एवं अन्य उर्वरक संयंत्र स्थापित किए गए। आज देश की आवश्यकता के अनुसार गैस युक्त हिंदुस्तान उर्वरक रसायन लिमिटेड (हर्ल) में नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन हो रहा है।
*न्याय की गुहार लगा रहे हैं सिंदरी बस्ती के विस्थापित*
सिंदरी बस्ती में रह रहे ग्रामीणों का कहना है कि सिंदरी गांव के नाम से सिंदरी विधानसभा क्षेत्र है। 1943 में बंगाल में आए हुए अकाल की मार को देखते हुए तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्यवाद देश में खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि और स्वावलंबन हेतु यहां खाद कारखाना स्थापित करने का काम प्रारंभ किया गया और आजादी उपरांत प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों उद्घाटन हुआ। पूर्वजों ने देश हित में अपना पैतृक घर एवं जमीन उद्योग लगाने के लिए हंसी खुशी दी, मगर इसके विपरीत विस्थापितों को सरकार द्वारा सभी लाभ से वंचित रखा गया है। सरकार द्वारा एक लंबी अवधि के बाद भी विस्थापन का प्रमाण पत्र नहीं दिया गया है। जिसके कारण ग्रामीणों को न ही सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा हैऔर न ही उनके जाति एवं आवासीय प्रमाण पत्र निर्गत हो रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे पूर्वजों ने उद्योग के लिए जमीन दी थी पर उनके आश्रितों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है।

*ग्रामीण, जिन्होंने अपनी जिजीविषा बताई*

1) भक्ति पद पाल जो सिंदरी फर्टिलाइजर विस्थापित मोर्चा के अध्यक्ष हैँ ने विदित समय में आए विपदा से कैसे निपटे इसी में सिंदरी बस्ती निवासी उलझे हुए हैँ तो अपना भविष्य क्या बनाएंगे या देखेंगे। श्री पाल ने बताया कि बीते 76 सालों में 17 बार लोकसभा चुनाव हुए इसमें 10 बार कांग्रेस एक बार जनता पार्टी एक बार जनता दल और पांच बार बीजेपी की सरकार बनी है। हर बार सांसद प्रत्याशी,विधायक प्रत्याशी सिंदरी गांव आते हैं और अपने पार्टी के उम्मीदवार को वोट देने के लिए आग्रह करते हैं। हमारी समस्या के हल पर झूठा आश्वासन देकर चले जाते हैं।

2) संकरी मलिक ने अपनी ब्याथा बताई कि हम टूटी झोपड़ी में रहते हैं। ना यहां बिजली की व्यवस्था है और ना पानी की व्यवस्था। हम सभी बस्ती वासी नहाने , घर के रोजमर्रा कार्य एवं पीने के लिए सुदूर नगर मे पानी सप्लाई देने वाले फटे पाइप से पानी ढोकर अपनी झोपड़ी में लाते हैं, जो लगभग 40 – 45 मिनट में बंद हो जाता है और चापाकल भी तो नहीं है। हमारा परिवार मजदूरी कर जीवन यापन करता है। हमारी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है।

3) आलोक चौधरी ने जानकारी दी कि हम स्वतंत्र भारत में गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं। हम सरकार की सभी सुविधाओं से वंचित है।

4) युवा सौरव कुमार पाल ने बताया कि सरकार का प्रावधान है कि परियोजना से प्रभावित परिवारों को रोजगार के अवसर दिए जाएं। हम भूमिहीन बेरोजगार हैं।
5) भोलानाथ रजवार का कहना है कि स्वास्थ्य सेवा के नाम पर एक अटल क्लीनिक है। नियमित डॉक्टर आते नहीं है और न दवा उपलब्ध होती है। निवास स्थान के कागजात नहीं होने के कारण व्यवसाय लोन, पशुपालन लोन, शिक्षा हेतु लोन नहीं मिलता है।

सिंदरी बस्ती के निवासियों को मौलिक सुबिधा पेय जल, सुलभ शौचालय, स्वास्थ से सम्बंधित विभिन्न उपाय, आवासीय, आय, जाति, विस्थापन सर्टिफिकेट आदि से आज भी महरूम हैँ। उपरोक्त विडम्बनाओं से निपटने के लिए एक साथ सिंदरी बस्ती निवासी ने निर्णय लिया कि अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करेंगे, जब तक कि हमारी समस्या का समाधान कोई नहीं बता देता।

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